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भारतीय रूपए का ECS से UPI तक का सफर |

मित्रों वित्तीय प्रणाली अर्थात बैंकिंग प्रणाली से संबंधित वित्तीय प्रणाली से तो आप थोड़ा बहुत परिचित अवश्य होंगे | हम लोगो के मस्तिष्क में अक्सर ये जिज्ञासा उत्पन्न होती है कि आखिर बैंक को आय कँहा से आती हो ? मित्रों ये कोई अत्यंत पेचीदा प्रश्न नहीं है, बैंक में आप और हम तथा हमारे जैसे करोड़ो ग्राहक जो अपने परिश्रम की कमाई जमा करते हैं, बैंक उन्हीं पैसों को जरूरतमंद लोगों को निर्धारित ब्याज की दर से ऋण के रूप में प्रदान करता है, अत: ऋण लेने वाले ग्राहकों के द्वारा दी गयी ब्याज की राशि में से कुछ हिस्सा आपको और हमें देता है तथा बाकि का हिस्सा उसकी आय होती है | अब बैंक में यदि खाता( Account) है तो कोई भी व्यक्ति आपके खाते में पैसे आपकी ओर से जमा करा सकता है, परन्तु आपके खाते में से पैसे निकालने के लिए आपकी विशेष आवश्यकता पड़ती है | 

पहले चेक बुक के रूप में मिलने वाला चेक ही एक माध्यम हुआ करता था, अपने खाते में से (स्वयं के लिए अथवा किसी अन्य को देने के लिए ) पैसे निकालने के लिए फिर १९८७ ई में आया ATM अर्थात Automated teller machine इस संगणित विद्युतीय प्रक्रिया ने बैंकिंग प्रणाली में लेन देन के क्षेत्र में क्रांति ला दी | अब बैंक में जाये बिना आप बैंक के द्वारा दिए गए डेबिट कार्ड के माध्यम से अपने बैंक के  ATM से पैसे निकाल सकते थे | इसमें भी कालांतर में सुधार किया गया और १९९७  में, भारतीय बैंक संघ (आईबीए) ने भारत में साझा एटीएम का पहला नेटवर्क “स्वधन” (SWADHAN) स्थापित किया। इस नेटवर्क प्रणाली की देख रेख, प्रथम पांच वर्ष के लिए, इंडिया स्विच कंपनी (ISC) के हाथों में सौप दिया गया और इस नेटवर्क प्रणाली से  कार्डधारकों को नेटवर्क में किसी भी एटीएम से नकदी निकालने की अनुमति दी गई थी, यदि उनके पास एटीएम के स्वामित्व वाले बैंक में खाता नहीं था। 

वर्ष २००२  में, भारतीय बैंक संघ (आईबीए) के ५३  सदस्य बैंकों के १०००  से अधिक “एटीएम”  इस  नेटवर्क प्रणाली से जुड़े थे। यह  नेटवर्क प्रति दिन २५0,000 लेनदेन को संभालने में सक्षम था, लेकिन प्रत्येक दिन लगभग ₹१00,000 मूल्य के केवल ५000 लेनदेन हुए। इसके विपरीत, आईसीआईसीआई बैंक के लगभग ६४० एटीएम के नेटवर्क ने प्रत्येक दिन लगभग ₹२0,000,000 के लेनदेन को संभाला। इंडिया स्विच कंपनी (ISC) के साथ अनुबंध समाप्त होने के बाद, भारतीय बैंक संघ (आईबीए)  को इस  गैर-किफायती नेटवर्क प्रणाली SWADHAN का प्रबंधन करने के लिए कोई नहीं मिला अत: दिनांक  ३१  दिसंबर २००३ को इसे बंद कर दिया गया।

स्वधन के पतन के बाद, बैंक ऑफ इंडिया, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, इंडियन बैंक, यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया और सिंडिकेट बैंक ने “कैशट्री” (CASHTREE ) नामक एक एटीएम-शेयरिंग नेटवर्क का गठन किया। सिटी बैंक, भारतीय औद्योगिक विकास बैंक, स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक और एक्सिस बैंक ने “कैशनेट” (CASHNET) नामक एक समान नेटवर्क का गठन किया। पंजाब नेशनल बैंक और केनरा बैंक ने भी ऐसे नेटवर्क बनाए। अगस्त २००३ में, IDRBT (The Institute for Development & Research in Banking Technology i.e. IDRBT)ने घोषणा की कि वह देश के एटीएम को एक नेटवर्क में एक साथ जोड़ने के लिए राष्ट्रीय वित्तीय स्विच (National Financial Switch i.e. NFS) का निर्माण करेगा। आईडीआरबीटी ने यूरोनेट वर्ल्डवाइड और ओपस सॉफ्टवेयर के साथ सहयोग किया ताकि बैंकों को अपने स्वयं के स्विच को एनएफएस से जोड़ने की अनुमति मिल सके। एनएफएस में एक इंटर-एटीएम स्विच और एक ई-कॉमर्स पेमेंट गेटवे शामिल था। 

आईडीआरबीटी द्वारा दिंनाक २७  अगस्त २००४  को तीन बैंकों, कॉर्पोरेशन बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा और आईसीआईसीआई बैंक के एटीएम को जोड़ने के लिए राष्ट्रीय वित्तीय स्विच नामक नेटवर्क प्रणाली  शुरू किया गया था। IDRBT ने तब भारत के सभी प्रमुख बैंकों को बोर्ड पर लाने की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य करते हुए दिसंबर २००९  तक, देश के  ३७  बैंकों के ४९,८८०  एटीएम को जोड़ने के लिए इस  नेटवर्क का फैलाव किया , जिससे देश में साझा एटीएम का सबसे बड़ा नेटवर्क राष्ट्रीय वित्तीय स्विच  NFS के रूप में अस्तित्व में आया | 

भारतीय रिज़र्व बैंक के द्वारा दिनांक १५  अक्टूबर २००९ को दिए गए आदेश के आधार पर   National Payments Corporation of India (NPCI) ने  दिनांक १४  दिसंबर २००९ को बैंकिंग प्रौद्योगिकी विकास और अनुसंधान संस्थान (IDRBT) से राष्ट्रीय वित्तीय स्विच (एनएफएस) के  संचालन और प्रबंधन के कार्य  को ‘जहां है जैसा है’ आधार पर अपने हाथो में ले लिया । 

अब इस प्रणाली से लोगो को कई सुविधाएं हो गयी जैसे पैसे निकलना, बचत की जाँच करना, पिन पंजीकृत करना, पैसे का लें दें करना इत्यादि | पर ATM से सुविधाएं तो मिली परन्तु यह सब एक सिमित दायरे में हो सकता था अत: बड़े पैमाने पर आसानी से लेन देन के लिए किसी और प्रणाली को विकसित करने की आवश्यकता महसूस हुई  और इस आवश्यकता ने जन्म दिया ECS (  Electronic Clearance Service ) को जन्म दिया | 

 Electronic Clearance Service :- 

इलेक्ट्रॉनिक क्लीयरेंस सर्विस (ईसीएस) योजना बैंकों/कंपनियों/निगमों /सरकारी विभागों द्वारा ब्याज/वेतन/पेंशन/कमीशन/लाभांश/वापसी के आवधिक (मासिक/त्रैमासिक/अर्धवार्षिक/वार्षिक) भुगतान जैसे थोक (Bulk) में  भुगतान/ लेनदेन  करने का एक वैकल्पिक तरीका प्रदान करती है। । इस योजना के तहत लेन-देन एकल उपयोगकर्ता स्रोत (अर्थात बैंक/कंपनियां/निगम/सरकारी विभाग) से बड़ी संख्या में गंतव्य खाता धारकों (ग्राहकों/निवेशकों) तक जाते हैं। यह योजना कागजी लिखतों (जैसे चेक इत्यादि ) को जारी करने और संभालने की आवश्यकता को समाप्त करती है और इस प्रकार बैंकों और कंपनियों/निगमों/सरकारी विभागों द्वारा थोक में भुगतान करने वाली बेहतर ग्राहक सेवा की सुविधा प्रदान करती है। इस पूरी प्रक्रिया को  NACH  या नेशनल ऑटोमेटेड क्लियरिंग हाउस नामक क्लियरिंग हाउस द्वारा प्रबंधित और संचालित किया जाता है|  इसे वर्ष १९९० में प्रथम बार उपयोग में लाया गया | परन्तु जैसा कि आप जानते हैं कि यह थोक में और बड़े स्तर पर भुगतान करने की सुविधा देने वाली प्रणाली थी अत : फुटकर और त्वरित भुगतान करने के लिए उतना उपयोगी नहीं थी | 

इसके पश्चात वर्ष २००४ में IRDBT (The Institute for Development & Research in Banking Technology)   RTGS अर्थात Real Time Gross Settlement) प्रणाली को अस्तित्व में लेकर आयी :- “आरटीजीएस” का संक्षिप्त नाम रियल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट है। आरटीजीएस प्रणाली एक फंड ट्रांसफर तंत्र है जहां धन का हस्तांतरण “वास्तविक समय” और “सकल” आधार पर एक बैंक से दूसरे बैंक में होता है। यह बैंकिंग चैनल के माध्यम से सबसे तेज़ धन अंतरण प्रणाली है। “वास्तविक समय” में निपटान का अर्थ है कि भुगतान लेनदेन किसी प्रतीक्षा अवधि के अधीन नहीं है। जैसे ही वे संसाधित होते हैं, लेन-देन व्यवस्थित हो जाते हैं। “ग्रॉस सेटलमेंट” का अर्थ है कि लेन-देन का निपटारा एक-से-एक आधार पर बिना किसी अन्य लेन-देन के बंचिंग के किया जाता है। यह ध्यान में रखते हुए कि धन हस्तांतरण भारतीय रिजर्व बैंक की पुस्तकों में होता है, भुगतान को अंतिम और अपरिवर्तनीय माना जाता है। परन्तु इसमें परेशानी ये थी कि रूपये २ लाख या इससे अधिक के लेन  देन के लिए इस प्रणाली का उपयोग किया जाता था , अत: रुपये २ लाख से निचे वाले लेन देन के लिए इसका उपयोग नहीं किया जा सकता था| 

इसके पश्चात वर्ष २००५ में  NEFT अर्थात National Electronic Fund Transfer प्रणाली अस्तित्व में आई | इस प्रणाली के अंतर्गत आरबीआई की एनईएफटी सेवा का उपयोग करते हुए अन्य सहभागी बैंक के साथ क्रेडिट खाते में धनराशि स्थानांतरित की जाती है। आरबीआई सेवा प्रदाता के रूप में कार्य करता है और क्रेडिट को दूसरे बैंक के खाते में स्थानांतरित करता है। अब इसमें रुपये २ लाख से कम की राशि  का भुगतान आसानी से बड़े ही अल्प समय में किया जा सकता है | इस प्रणाली के अंतर्गत लेनदेन के १  घंटे के भीतर धनराशि आरबीआई को भेज दी जाती है । लाभार्थी को क्रेडिट करने में लगने वाला वास्तविक समय लाभार्थी बैंक द्वारा भुगतान की प्रक्रिया में लगने वाले समय पर निर्भर करता है।

अब यंहा पर RTGS और NEFT में एक जो सबसे बड़ी समस्या थी और वो थी Beneficiary को जोड़ना, जसके लिए उसका बैंक अकाउंट , IFSC No., बैंक का नाम इत्यादि जोड़ना पड़ता था, और इन सबकी अनुपस्थिति में आपका लेन देन नहीं हो पाता था | इसके साथ ही ये सिमित समय के लिए उपलब्ध थे अर्थात बैंक के कार्य दिवस और कार्य करने वाले घंटो के हिसाब से उपलब्ध थे | अत: इससे भी अधिक सुविधाजनक प्रणाली पर कार्य शुरू हुआ |  

इसके पश्चात वर्ष २०१० में IMPS (Immediate Payment Service) भुगतान प्रणाली अस्तित्व में आयी :- आईएमपीएस एक और रीयल-टाइम भुगतान सेवा है, लेकिन विशिष्ट कारक यह है कि आईएमपीएस 24/7 उपलब्ध है और आप बैंक छुट्टियों पर भी सेवा का लाभ उठा सकते हैं। IMPS का उपयोग करके, आप तुलनात्मक रूप से कम राशि, रुपये  2 लाख तक तुरंत स्थानांतरित कर सकते हैं। । आप IMPS को फंड ट्रांसफर मोड के रूप में सोच सकते हैं जिसमें RTGS और NEFT दोनों की बेहतरीन विशेषताएं हैं। आप तत्काल परिणामों के साथ, जितनी बार चाहें उतनी कम राशि स्थानांतरित कर सकते हैं। हालाँकि IMPS सेवाओं का उपयोग ज्यादातर ऑनलाइन किया जाता है, कुछ बैंक SMS सेवाएँ प्रदान करते हैं। यह देखने के लिए अपने बैंक से संपर्क करें कि क्या वे एसएमएस के माध्यम से आईएमपीएस हस्तांतरण का समर्थन करते हैं।

IMPS सेवा भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (NPCI) द्वारा प्रदान की जाती है। उनकी सेवाएं ग्राहकों को बैंकों और प्रीपेड भुगतान साधन (पीपीआई) जारीकर्ताओं दोनों के माध्यम से धन हस्तांतरित करने की अनुमति देती हैं। पीपीआई ऐसे उपकरण हैं जो आपको पीपीआई में संग्रहीत मूल्य का उपयोग करके सामान और सेवाएं खरीदने या फंड ट्रांसफर शुरू करने की अनुमति देते हैं। पीपीआई के कुछ उदाहरणों में स्मार्ट कार्ड, मैग्नेटिक स्ट्राइप कार्ड, डिजिटल वॉलेट और वाउचर शामिल हैं। जिन व्यक्तियों का बैंक खाता नहीं है वे पीपीआई का उपयोग करके आईएमपीएस द्वारा निधि अंतरण कर सकते हैं।

अब मित्रों यंहा तक तो सबकुछ ठीकठाक चल रहा था परन्तु Beneficiary को जोड़ने वाला सिस्टम बना ही रहा तथा इसके साथ ही हर RTGS, NEFT या IMPS पर आपको कुछ निर्धारित शुल्क बैंक को देना ही पड़ता था, अत: नकद लेन देन के बाजार पर कब्जा करने हेतु शोध, चर्चा और परिचर्चा होती रही और अंतत: वर्ष २०१६ में UPI (Unified Payments Interface) प्रणाली का जन्म हो गया | अब आपका बैंक आपके छोटे से चल ध्वनि यंत्र अर्थात मोबाइल फोन के अंदर समा गया | UPI (Unified Payments Interface) प्रणाली का जन्म देने वाला भारत दुनिया का एकमात्र देश है, इसकी टेक्नोलॉजी पूर्णतया स्वदेशी है और ये तकनिकी दुनिया में किसी के पास नहीं है | 

UPI (Unified Payments Interface) :-यूपीआई एक  तत्काल (Instant) रीयल-टाइम भुगतान प्रणाली है, जो दो बैंक खातों के बीच एक मोबाइल इंटरफेस के माध्यम से तुरंत नकदी स्थानांतरित करने में मदद करती है। इस प्रकार, यूपीआई एक ऐसी अवधारणा है जो विभिन्न बैंक खातों को एक ही मोबाइल ऐप से जुड़ने की अनुमति देती है। भारत के राष्ट्रीय भुगतान निगम ने RBI और IBA (इंडियन बैंक एसोसिएशन) की देखरेख में इस प्रणाली की स्थापना की।

UPI प्रणाली कार्य कैसे करती है :- यूपीआई सेवा का उपयोग करने के लिए उपयोगकर्ताओं को अपनी पसंद का वीपीए (वर्चुअल पेमेंट एड्रेस) बनाना होता है ।

उपयोगकर्ता को अपने बैंक खाते को इस  वीपीए से भी जोड़ना होता है और जुड़ने के पश्चात VPA ग्राहक का वित्तीय पता बन जाता है, और उन्हें पैसे भेजने या प्राप्त करने के लिए IFSC कोड, लाभार्थी खाता संख्या या नेट बैंकिंग पासवर्ड और उपयोगकर्ता आईडी जैसी जानकारी वापस लेने की आवश्यकता नहीं होती है। पुल एंड पुश के लिए ग्राहक के वर्चुअल एड्रेस का उद्देश्य अतिरिक्त सुरक्षा को मजबूत करना है। ग्राहक को इस जानकारी में बार-बार पंच करने की आवश्यकता नहीं है, और कोई साख साझा करने की आवश्यकता नहीं है। इस प्रणाली की सहायता से केवल बार कोड को स्कैन करके भुगतान किया और लिया जा सकता है | यह पैसे ट्रांसफर करने, बिल भुगतान करने, खरीदारी भुगतान करने और बहुत कुछ करने का एक सुरक्षित, स्थिर, त्वरित और सीधा तरीका प्रदान करता है। यह उपयोगकर्ताओं को अपने बैंक खाते से सीधे किसी व्यक्ति के बैंक खाते में धन हस्तांतरित करने में मदद करता है। यूपीआई लेनदेन उपयोगकर्ताओं के पूर्ण बैंक विवरण के साथ-साथ उपयोगकर्ताओं द्वारा भुगतान शुरू करने के बाद अन्य गोपनीय जानकारी की मांग नहीं करते हैं।

UPI आईएमपीएस (तत्काल भुगतान सेवा) के माध्यम से तत्काल धन हस्तांतरण की सेवा प्रदान करता है और यह प्रणाली एनईएफटी (NEFT) प्रणाली से अधिक तीव्रता वाली होती है। लोग चौबीसों घंटे और सभी सार्वजनिक अवकाशों पर यूपीआई का उपयोग कर सकते हैं क्योंकि यह पूरी तरह से डिजिटल है।

यह एक मोबाइल ऐप  के माध्यम से विभिन्न बैंक खातों तक पहुंच की अनुमति देता है। वर्चुअल भुगतान पते का उपयोग करता है, जो अद्वितीय बैंक आईडी है।

मोबाइल मनी आइडेंटिफ़ायर या MMID के साथ IFSC कोड, खाता संख्या और फ़ोन नंबर का उपयोग करता है। एमपिन (MPIN) या मोबाइल बैंकिंग के लिए पिन (व्यक्तिगत पहचान संख्या) हर लेनदेन को सत्यापित करने के लिए प्रदान किया जाता है। कुछ बैंक विभिन्न Android उपकरणों के लिए अपना स्वयं का UPI प्रदान करते हैं। बैंक यूपीआई योजना के लिए शुल्क ले सकते हैं या नहीं भी ले सकते हैं। मर्चेंट भुगतान, इन-ऐप लेनदेन, बिजली बिलों के भुगतान, ओटीसी भुगतान और बारकोड के आधार पर भुगतान के लिए अच्छा है। कोई भी व्यक्ति सीधे मोबाइल एप से शिकायत कर सकता है।

खैर बात केवल यहीं तक नहीं रुकी है, बात इससे निकल कर बहुत आगे तक जा चुकी है अब भारत सरकार ने RuPAY नामक क्रेडिट कार्ड को बाजार में उतारकर MASTER CARD और VISA CARD के बाजार को कब्जे में करने के पथ पर आगे बढ़ चुकी है | जी हाँ मित्रों अभी तक आप अपने बैंक खाते को UPI से जोड़कर लेन देन किया करते थे परन्तु अब आप RuPAY क्रेडिट कार्ड को इस UPI से जोड़कर लेन देन कर सकते हैं |  अब यंहा पे मामला ये है कि सम्पूर्ण विश्व  में  क्रेडिट कार्ड के बाजार में  visa card या master card  नामक दो अमेरिकी कंपनियों का दबदबा है जो हर लेन देन पर २ % का MDR अर्थात Merchant Discount Rate के रूप में शुल्क वसूलते हैं , जो की एक बहुत बड़ा वित्तीय बाजार है | आप केवल इसे एक उदहारण से समझ ले कि  वर्ष २०१६  में अपनी स्थापना के तीन साल बाद, UPI ने अक्टूबर २०१९  में 1 बिलियन लेनदेन की सीमा को पार कर लिया। अक्टूबर २०२०  तक, यह प्रति माह २ बिलियन से अधिक लेनदेन तक बढ़ गया और अगले १०  महीनों के दौरान, यूपीआई ने प्रति माह ३  बिलियन से अधिक लेनदेन किए।एनपीसीआई के आंकड़ों के अनुसार, कैलेंडर वर्ष २०२२  में यूपीआई का उपयोग करके १२५.९४  ट्रिलियन रुपये के लगभग ७४  बिलियन लेनदेन किए गए। प्लेटफॉर्म ने २०२१  में कुल ७१ .५४  ट्रिलियन रुपये के ३८  बिलियन से अधिक लेनदेन को संभाला। परिणामस्वरूप, एक साल में इस प्लेटफॉर्म पर  लगभग ९०  प्रतिशत अधिक लेनदेन हुआ और उनके औसत मूल्य में ७६  प्रतिशत की वृद्धि हुई।

अब भारत सरकार ने RuPay क्रेडिट कार्ड को बाजार में  दिया है और सबसे बड़ी बात ये है की रसिया , जापान , सिंगापूर के साथ  करीब १० से १५ देशो ने भारतीय क्रेडिट कार्ड को मान्यता दे दी है | और UPI के माध्यम से भुगतान करने वाला यह प्रथम क्रेडिट कार्ड होगा जो पूर्णतया सुरक्षित होगा अत: तनिक कल्पना कीजिये यदि भारत के क्रेडिट कार्ड होल्डर मास्टर कार्ड या वीसा कार्ड के स्थान पर RuPAY क्रेडिट कार्ड का उपयोग करने लगे तो उस २% MDR पर तो RBI का कब्जा होगा अर्थात भारत का पैसा भारत में और इससे रुपया डॉलर के मुकाबले मजबूत होता चला जायेगा और फिर विश्व की अर्थव्यवस्था का मालिक अकेले डॉलर नहीं अपितु Rupay  भी होगा | हाल ही में जब मशहूर पंजाबी गायक श्री मीका सिंह ने क़तर नामक इस्लामिक राष्ट्र में भारतीय रुपये में व्यापार करते अपना विडिओ सोशल मिडिया पर डाला तो देखते ही देखते लोगो के मध्य चर्चा का केंद्र बिंदु बन गया और पड़ोसी देशों जैसे चीन तथा पाकिस्तान के पैरों  तले जमीन ही खिसक गयी |

 क्यों आगे बढ़ रहा हैं ना भारत की अभी भी कोई संशय है | 

लेखक :- नागेंद्र प्रताप सिंह (अधिवक्ता)

aryan_innag@yahoo.co.in

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